
ॐ सर्वे भवन्तु सुखिनः सर्वे सन्तु निरामया

ॐ सर्वे भवन्तु सुखिनः सर्वे सन्तु निरामया
सर्वे भद्राणि पश्यन्तु मा कश्चिद् दुःख भाग्भवेत
हम हिन्दू प्राचीन महान ऋषि मुनियों की संताने- ऐसे ऋषि ऐसे मुनि जिन्होंने अपने प्रेम की धार धरती के उन समस्त चर अचर जीव जंतुओं पर दिखाई जिन्हें नेत्रों से देखा जा सकता था, जिन्हें हाथों से स्पर्श किया जा सकता था, उन पर भी जिनके होने का मात्र एहसास किया जा सकता था। तभी तो आज के विज्ञान के विकास से बहुत पहले ही वे कह सके कि मानव को 84 करोड़ योनियों से भटक कर ये मानव जीवन प्राप्त होता है पहले पहल तो विज्ञानं के लिए ये विश्वास में लाना बड़ा कठिन था पर अब जब वह जितनी परते खोलता जा रहा है उसमें एक और नई परत उसे मिल रही है। ये विश्व व्रह्माण्ड अपने अंदर न जाने कितनी समताओं- कितनी विषमताओं, कितनी विविधता- कितनी रहस्यमयता को छिपाये है।
प्रकृति की उदारता से उदारता को ग्रहण कर प्राचीन ऋषि मुनियों ने तब, न जाने कब जो सन्देश हमें दिए, जो विचार प्रतिपादित किये वे तब जितने महत्वपूर्ण थे, परन्तु आज की संवेदनहीन मनुष्यता, स्वार्थी प्रवृत्तियों,वाकपटु स्वभाव मनुष्यों के बीच उतने ही उससे भी अधिक महत्व पूर्ण हैं।
परन्तु हम जिन्हें जरा सा भी अपनी संस्कृति का बोध है, जिन्हें जरा सा भी अपनी संस्कृति से लगाव है, जिन्हें जरा भी इस बात पर विश्वास है- कर्मण्ये बाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन वे कभी भी किसी व्यक्ति का अहित सोच भी नहीं सकते करना तो बहुत दूर की बात है। वे तो उपरोक्त श्लोक में कही गई सुवास ही मित्रों तो क्या शत्रुवत व्यवहार करनेवालों में ही फैलाएंगे- सब सुखी हो, सभी की काया निरोगी हो अर्थात सब स्वस्थ हो, सभी सबके लिए भद्र हो सहयोगी हों, किसी को किसी प्रकार का दुःख न हो सा जगत शांतिमय हो, सब शांत हो।
आज हमारे इस कार्य के अंतिम दिन हम इसी शुभ वचन के साथ सबके कल्याण की कामना करते