
बहुराष्ट्र के लिए युद्ध करेंगे कहनेवाले लोग सरकार में हैं : भीम रावल
‘कम्युनिष्ट आंदोलन को तोड़कर विदेशी के सम्मुख झुकनेवालों ने प्रचार किया’

नेकपा एमाले नेता भीम रावल राष्ट्रीयता पर खरा तर्क करने वाले नेताओं में से हैं। वे रावल ही एमाले का विवाद बढ़ने के कारण अध्यक्ष केपी ओली की कार्रवाही में पड़े हैं। कितनो के ही द्वारा ये आरोप लगाया जाता रहा है कि भीम रावल के कारण ही एमाले की एकता का प्रयास असफल हुआ है। परन्तु वास्तविकता क्या है ? यहाँ पेश हैं उनके साथ की गई एक बातचीत...
एक तरफ आप और आप जैसे कितने ही नेताओं पर अध्यक्ष ओली द्वारा कार्रवाही की गई है। दूसरी तरफ एमाले को फोड़ने के लिए भीम रावल बड़ी तन्मयता से जुटे हैं का आरोप भी लगता आया है। ये प्रचारबाजी कितनी सही है ? इसके साथ ही ऐसी अवस्था में आपको एमाले का नेता कहना गलत होगा कि नहीं ?
भीम रावल द्वारा पार्टी को तोड़ने का काम हुआ है ये सब कहना हास्यास्पद होने के साथ ही प्रायोजित बात है। क्योंकि नेपाल कम्युनिष्ट पार्टी (नेकपा) होने के वक्त भी हम लोगों ने बारंबार केपी ओली तथा उनके ऐसे प्रचार करनेवाले व्यक्तियों को आप लोग बैठक में आइये, बैठक में सलाह मशवरा करें तथा विधान के अनुसार काम करें का कितनी ही बार आग्रह किया।
अंत में ये सब भी न मानने पर केपी ओली जी को ही 5 वर्षों तक प्रधानमंत्री रहिये, महाधिवेशन अध्यक्ष भी आप ही रहिये का भी स्थायी कमेटी द्वारा निर्णय किया गया। परन्तु उन्होंने इन किसी भी मामले को कार्यान्वयन नहीं होने दिया। उसके बाद अदालत में निवेदक द्वारा मांग किये ही न गए विषय में प्रवेश करके नेकपा को विखंडित किया गया।
उसके बाद अदालत द्वारा नेकपा एमाले को जीवित की जा चुकी अवस्था में पार्टी को मजबूत बनाए कहते हुए केपी ओली के नजदीक होनेवाले नेताओं को 23 गते के बाद तुरंत ही संपर्क करके बीतचीत करनेवाला व्यक्ति मैं ही हूँ। उसके बाद चैत्र 2 गते की धूमबाराही वार्ता के असफल होने के बाद केपी ओली के साथ सवा दो घंटे तक बातचीत करके ऐसा न करें, नेकपा एमाले तथा नेपाल का कम्युनिष्ट आंदोलन के कमजोर करने का मतलब अंततः हमारे राष्ट्र पर ही असर होगा कहनेवाला इंसान भी मैं ही हूँ।
विगत में भी नेकपा एमाले के अंदर अनेक समस्याएं आने पर नेताओं के साथ बतचीत करके सब कुछ ठीक ठाक करनेवाला व्यक्ति होने के कारण अभी आकर भीम रावल ने बिना फोड़े नहीं होगा का प्रचार करने का अर्थ क्या है, तो ये प्रचार जिसने भी किया है, ये नेकपा एमाले अभी जिस तरह पुनर्जीवित अवस्था में है उसकी समस्त संरचना, इसके जन संगठनों को पूर्ववत अवस्था में लौटना चाहिए मेरी अडान तथा दृष्टिकोण रहा। परन्तु एमाले को कमजोर करनेवालों का दृष्टिकोण केपी ओली को जो उचित लगा वही करना। गुट मात्र बनाना तथा आप लोग जैसों को निकल देगें की बात करनेवालों की ये प्रचारबाजी है।
मैं अभी भी नेकपा एमाले राष्ट्रीय स्वाधीनता, स्वतंत्रता, इस देश की अखंडता, स्वाभिमान, जनता की समृद्धि के लिए इसके द्वारा कार्यक्रम लाया गया, समाजवाद उन्मुख रास्ते को अंगीकार किया गया, उस सबके विपरीत जिस तरह प्रधानमंत्री आगे गए उसे रुकना चाहिए।
क्योंकि पार्टियां, नेता देश की सेवा के लिए हैं राष्ट्र की स्वाधीनता तथा स्वतंत्रता के लिए हैं। ऐसी मेरी धारणा होने के कारण वो उसका कुप्रचार मात्र है। इस कम्युनिष्ट आंदोलन को ही तोड़कर विदेशियों के सम्मुख झुकनेवाले देश भक्तिपूर्ण भावना से संपन्न लोगों को सह न सकने के कारण ऐसी प्रचारबाजी किया जाना यथार्थ है। इसी लिए नेकपा एमाले के नवे महाधिवेशन से हम लोगों ने जो भी निर्णय लिया था, उसका मार्गदर्शन, नीति, कार्यक्रम तथा उस पर अटल रूप से डटकर इस रास्ते पर जाए की मान्यता रखनेवाला मैं संभवतः उन्हें असहय होने के कारण इस किस्म का कुप्रचार कराया गया होगा, परन्तु इसका कोई भी अर्थ नहीं है।
यदि केपी शर्मा ओली खुद को मैं नवे राष्ट्रीय महाधिवेशन से निर्वाचित अध्यक्ष हूँ, मुझे हटाने का किसी को अधिकार नहीं है कहते हैं तो मैं भी उसी महाधिवेशन से निर्वाचित उपाध्यक्ष हूँ। सर्वाधिक मत लाया हूँ, तो फिर क्यों मेरा अधिकार नहीं होता? इस कारण नेकपा एमाले के उपाध्यक्ष अथवा नेता कहा तो उसमें कोई भी गलती न होगी, कोई फरक नहीं पड़ेगा।
सुदूर पश्चिम प्रदेश के मुख्य मंत्री त्रिलोचन भट्ट द्वारा विश्वास का मत प्राप्त करने के बाद उन्हें बधाई देते हुए आपने विधि-विधान और पद्धति की बात करनेवाले क्या मुख्यमंत्री भट्ट से नैतिकता का सबक सीखेंगे कहते हुए प्रश्न किया था। परन्तु संसदीय व्यवस्था में फ्लोर क्रासिंग को अपराध ही माना जाता है उस विधि विधान के आईने में आप खुद को किस तरह देखते हैं ?
आपने फ्लोर क्रासिंग को अपराध बताया। अब देखें इसका सिलसिला- जिस समय पिछले आम निर्वाचन हुआ था उस निर्वाचन में एमाले ने देश भर में मात्र नेकपा माओवादी के साथ चुनावी मोर्चा बनाया था। वर्तमान प्रधान मंत्री ने क्या किया ? राप्रपा से किया। शायद खुद हार जायेंगे सोचकर उन्होंने पार्टी से किसी किस्म का कोई निर्णय न करके दूसरे क्षेत्र में राप्रपा को मत देने तथा आपने क्षेत्र में राप्रपा के मतों को लेने का काम किया।
संगठनात्मक दृष्टिकोण से ये सिद्धांत का पहला उलंघन था। उसके बाद लगभग दो तिहाई के बहुमत से निर्वाचन में हमारे विजयी होने के बाद भी पार्टी में किसी तरह की कोई बहस न करके जिसके साथ हमारा तीब्र अंतर्विरोध तथा राजनीतिक संघर्ष था उसे ही (उपेंद्र यादव पक्ष) सरकार का मंत्री बनाया अतः बाद में निकाला भी, ये दूसरा बाकया है।
और बहुत सी घटनाएं हैं। यहाँ बताना संभव नहीं है। परन्तु पिछली घटना देखिये हम सभी पार्टी के व्यक्तियों के साथ पार्टी एकता के बारे में कोई विचार-विमर्श ही नहीं करना परन्तु जिसके पास प्रतिनिधि सभा में मात्र 20 सीटें हैं जिस पार्टी के लोगों ने विगत में संविधान में आग भी लगाई थी। और अभी भी उपराष्ट्रपति में चयन होने के साथ ही बहु राष्ट्र राज्य नेपाल के निर्माण के लिए मुक्ति युद्ध करेंगे कहनेवाला व्यक्ति सरकार में है।
अब अगर कहा ही जय की 20 सांसदों वाली पार्टी के 10 लोगों को मंत्री बनाया। ऐसी अवस्था में आपके सुदूर पश्चिम के मुख्य मंत्री को मत दिया कहते हुए सिद्धांत ही न मिलनेवाले व्यक्ति को मनमानी करके, जो मन में आया करके, पार्टी का विघटन करने, केंद्रीय कमेटी भंग करने, संविधान को पददलित करने का काम करने के बाद, अब हम जो संविधान की रक्षा के लिए कार्यगत एकता से किया, उस शक्ति को मत देना कैसे अपराध हुआ ?
नागरिकता सम्बन्धी अध्यादेश आया, बजट भी अध्यादेश के माध्यम से ही आया। रूपचन्द्र बिष्ट के कहे अनुसार- व्यवस्था के बिगड़ने पर अगुवा दोषी। क्या हम उसी अवस्था पर पहुँच गए हैं ?
उनके द्वारा की गई सैद्धांतिक बात तो ठीक ही है। अभी प्रधान मंत्री अध्यादेश से शासन चलाने में लगे हैं। ये काम निरंकुश और स्वेच्छाचारी व्यक्ति द्वारा किया जाता है। प्रतिनिधि सभा की बैठक चल रही है। नागरिकता विधेयक राज्य व्यवस्था समिति द्वारा पारित करके प्रतिनिधि सभा द्वारा पारित किये जाने के लिए तैयार होने के दिन प्रधान मंत्री ने प्रतिनिधि सभा को ही विघटित कर दिया। किसके हित में है ? ये गंभीर प्रश्न है।
अभी देश के साधन स्रोतों को परिचालन करनेवाले बहुत से क्षेत्र हैं। एक ही किसी कंपनी ने 72 अरब का कर अदा नहीं किया है। बाशिंग्टन में मुक़दमा चल रहा है।
और भी बहुत सारी जगहें हैं जहाँ गड़बड़ी हुई है। वे क्या करते हैं ? चूरे और पर्वत श्रंखलाओं को फोड़कर भारत में पत्थर मिटटी और गिट्टी का निर्यात करेंगे। ये कहना तो ऐसा ही है कि मैं मेरा घर जलाकर उस राख को बेचकर धनी हूँगा अथवा अपनी माता को बंधक रखकर सोने के सिंहासन पर बैठूंगा जैसा ही है। ये वास्तव में अत्यंत दुखद, घृणित, निंदनीय और राष्ट्रघाती काम है। ऐसे ही बातों के कारण उनके साथ हमारा अंतर्विरोध है।
पत्थर गिट्टी के निर्यात के रूप में नेपाल का खनिज और यूरेनियम भारत को निकास करने की योजना के अनुसार ही इसे लाया गया है ऐसा भी सुनाने में आ रहा है। इस सम्बन्ध में आपका अध्ययन क्या कहता है ?
वो भी हो सकता है। क्योंकि मिलेनियम चैलेंज कॉर्पोरेशन अर्थात एमसीसी के साथ किया गया जो समझौता है उस समझौते के अनुसार उत्खनन करने पर जैसी सड़क बनानी है, विद्युत प्रसारण लाइन बनाने पर जहाँ काम किया जायेगा उस भूमि पर एमसीसी का पूर्ण अधिकार होगा और नेपाल सरकार ने उसमें उसकी स्वीकृति के बिना कुछ भी नहीं किया जा सकता जैसे राष्ट्रघाती प्रावधानों को लिखा है।
बाहर लोगों से कहा गया है कि ये तो मात्र 5 वर्षों के लिए है। उसकी 3-4 और धाराओं में एमसीसी का कब्ज़ा अनंतकाल तक के लिए है लिखा है। इतना ही नहीं जहाँ जहाँ एमसीसी गई है वहां की कृषि और खनिज पर उसका नियंत्रण होने के कानून उसके साथ साथ ही आये है।
नेपाल में भी प्रधानमंत्री केपी ओली और उनके अर्थमंत्री युवराज ख़तिवड़ा ने इस समझौते को प्रतिनिधि सभा से अनुमोदन होने से पहले ही कार्यान्वयन समझौता करके जमीन को अधिग्रहण करने का और वृक्षों को काटने का राष्ट्रघाती काम किया है। जिसे देश के कानून के अनुसार राजद्रोह का मुक़दमा चलाये जाने की वजाय राजदूत बनाया गया है। इस कारण पत्थर गिट्टी के नाम पर नेपाल के खनिज पदार्थों का निर्यात करने की चालबाजी तो नहीं है, कहकर प्रश्न किया जा सकता है।