
अमेरिका : कोरोना का साइड इफेक्ट-मानसिक तनाव-आत्महत्या

एजेंसी। कोरोना जैसी भयंकर महामारी ने समाज को अनेक तरह से अपनी चपेट में लिया एक और तो लोगों का संक्रमित होना, अस्पतालों में बीमारों का खचाखच भरा होना। लोगों की मौत, मौत से लोगों में आई दहशत। जान रक्षा के लिए सरकारों द्वारा की गई बंदाबन्दी की व्यवस्था। उफ्फ्फ क्या नहीं किया इस कोरोना ने मानों काल का गाल बनकर, युद्ध की रणचंडी बनकर सारे संसार को अपना ग्रास बनाने के लिए आमादा हो। अगर इतना ही होता तो भी- मगर बात तो इससे आगे भी अमेरिका जैसे विकसित देशों की तो समस्याएं और भी जटिल।
अमेरिका में नेवादा के क्लार्क काउंटी के बच्चे इन दिनों महामारी से उबजी परेशानियों से जूझ रहे हैं। मार्च 2020 में स्कूल बंद होने के बाद से काउंटी ऑफिस में ऐसे 3100 से ज्यादा मामले सामने आए, जिनमें बच्चों के मानसिक स्वास्थ्य पर असर पड़ता दिखा। इनमें आत्महत्या का विचार, खुद को नुकसान पहुंचाने जैसे मामले ज्यादा थे। 18 दिसंबर के बाद से तो बच्चों ने खुद की जान लेनी भी शुरू कर दी।
लास वेगास के आसपास बच्चों द्वारा आत्महत्या करने के बढ़ते मामले को देखते हुए काउंटी ऑफिस बच्चों को पहले की स्थिति में लाने में जुट गया है। इसी महीने स्कूल बोर्ड ने फिर से ग्रेड स्कूल खोलने के बारे में हरी झंडी दे दी। ये इसलिए भी जरूरी हो गया था, क्योंकि लास वेगास में कोरोना के संक्रमण और इससे मरने वालों की संख्या से कहीं ज्यादा संख्या इन पीड़ित बच्चों की थी।
हालांकि कुछ राज्यों में लोगों की सेहत, शिक्षकों और दूसरे स्कूल स्टाफ के बीमार होने और कुछ मामलों में हुई मौतों के मद्देनजर स्कूलों को बंद किया गया था। लेकिन बच्चों में खुदकुशी के मामलों को बढ़ता देख स्कूल फिर से खोलने पर विचार करना पड़ा है। अमेरिका के 40 राज्यों में सभी आयुवर्ग में मानसिक परेशानियों के चलते इमरजेंसी कॉल बढ़ रहे हैं।
क्लार्क काउंटी की बात करें, तो बीते 9 महीने में आत्महत्या के 18 मामले सामने आए, जबकि बीते साल सिर्फ 9 थे। इनमें से एक छात्र ने नोट छोड़ा था कि वह आने वाले समय के बारे में कुछ सोच नहीं पा रहा है। क्लार्क काउंटी के प्रशासन अधीक्षक डॉ. जेसस जारा कहते हैं, ‘मुझे लगता है कि ये सभी मेरे बच्चे हैं। बच्चों का जीवन और भविष्य बचाना हमारी सामूहिक जिम्मेदारी है।’