

बचपन में अर्थशास्त्र के अध्ययन में पढ़ा था भारतीय किसान के बारे में- 'भारतीय किसान ऋण में पैदा होता है, ऋण में ही जीता है और संपत्ति के नाम पर बच्चों के लिए ऋण ही छोड़ जाता है।''
समय कितना परिवर्तन देता है, कितने रंग दिखाता है, कितने अनुभव करवाता है- तब ये भारत की कहानी लगता रहा था पर सच तो ये हैं कि ये किसान की कहानी है।
समाज का वास्तविक जनक किसान जो खुद के पास सब कुछ होते हुए भी निरीह है, लाचार है, गरीब है- कारण क्या है? कारण है समाज की, राज्य की अव्यवस्थित प्रणाली, किसानों के प्रति लापरवाही का रुख।
64 वर्षीय किसान नारायण राय यादव की आकस्मिक मौत, वह किसान जो 20 बीघा जमीन का मालिक है, परन्तु फिर भी गुजरता है आर्थिक तंगी से। क्यों न हो उनकी मेहनत का कमाई से दूसरे मौज करते हैं।
गन्ना किसान न जाने कब से पीड़ित है, हमेशा राजधानी आता है, यहाँ कष्ट उठता है, धरने पर बैठता है। नारेबाजी करता है, सरकार के साथ झूठमूठ की वार्ता भी होती है, और भेज दिया जाता है वापस। कैसा आश्चर्य 4-4 वर्षों से किसानों की फसल की कीमत ऐडा नहीं जाती और देश में कोई कानून नहीं। मेहनतकश भूखे पेट और व्यापारी मौज में।
एक व्यक्ति की मौत कोई बड़ा मुद्दा नहीं- क्योंकि वह एक परिश्रमी मेहनतकश अपनी कमाई से अपना ही नहीं देश भर का मुख-पेट भरनेवाला काश्तकार है।
4 वर्षों से गन्ने के किसानों की फसल की भुक्तानी चीनी मीलों द्वारा नहीं की गई, किसान आक्रोशित, आंदोलन में उतरने को तत्पर, काठमांडू आ गए।
आंदोलन किसान के तथाकथित नेता और सरकार के बीच फिर से 4 सूत्रीय सहमति, राय को लगा कि इस बार फिर से ठगे गए। कोई पैसा तो हाथ लगा नहीं ऐसी सहमति तो पिछले वर्ष भी हुई थी। उसी सहमति के कार्यान्वयन न होने पर तो इस वर्ष कि ठण्ड खाने के लिए फिर इन्हें काठमांडू आना पड़ा था।
राय के पीड़ित परिवार के लोगों ने बताया- ऋण पर ऋण का बढ़ते जाना, दूसरी तरफ उधर सहमति के साथ आंदोलन बंद करने कि तैयारी ने शायद उनमें असह्य पीड़ा को जन्म दिया जिसे वे सह न सके।
भले ही ये परिवार गाँव में संपन्न ही माना जाता है, भले ही इनके पास 20 बीघा जमीन है पर ऋण कि मात्रा भी कोई कम नहीं। परिवार ने बताया कि परिवार 25 लाख से भी अधिक ऋण के भार के नीचे दबा है। ये ऋण उन्होंने घर-परिवार कि आवश्यकता पूरी करने तथा कृषि कर्म के लिए ही विभिन्न वित्तीय संस्थाओं से लिया था।
ऋण को चुकाने के समय के बीत चुकने के कारण हम सब अत्यंत आर्थिक दबाव में हैं। उनके बड़े बेटे सिया राम ने बताया।
राज्य और सरकार द्वारा किसान के हक़ हित के लिए सुधार तथा नए कानूनों की व्यवस्था किये जाने की आवश्यकता है अन्यथा समाज का पालक किसान अपनी ही अभावों की व्यथा के नीचे दबकर ऐसे ही संसार से बिदा होते रहेंगे।